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प्रणव वर्मा हुए झामुमो में शामिल/भाजपा को लगा बड़ा झटका/हेमंत सोरेन का बड़ा राजनीतिक दांव।

गिरिडीह,शिखर दर्पण संवाददाता।

गौरव भक्त

शनिवार को झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिला, जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उपस्थिति में भाजपा के कद्दावर नेता स्वर्गीय रति लाल वर्मा के सुपुत्र प्रणव वर्मा अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) में शामिल हो गए। कोडरमा लोकसभा क्षेत्र का पांच बार प्रतिनिधित्व करने वाले इस परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि को देखते हुए यह भाजपा के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। प्रणव वर्मा के साथ भाजपा अनुसूचित मोर्चा के प्रवक्ता दारा हाज़रा, आजसू पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता और विश्वकर्मा समाज के प्रदेश अध्यक्ष विकास राणा सहित कई प्रमुख नेता झामुमो में शामिल हुए।मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस अवसर पर सभी नए सदस्यों का स्वागत किया और कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा सभी समुदायों और वर्गों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस सामूहिक समर्थन से झारखंड में विकास को नई दिशा मिलेगी और पार्टी की सुदृढ़ता बढ़ेगी। हेमंत सोरेन ने इसे झारखंड की प्रगति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया, जिससे राज्य में झामुमो की स्थिति और मजबूत हो सकेगी।

*प्रणव वर्मा के परिवार की भाजपा से पुरानी निष्ठा और नई दिशा:-
प्रणव वर्मा का परिवार वर्षों से भारतीय जनता पार्टी का समर्पित कैडर रहा है। उनके पिता रति लाल वर्मा ने कोडरमा का पांच बार सफल प्रतिनिधित्व किया था, लेकिन हाल ही में भाजपा के भीतर हुई राजनीतिक उठा-पटक और टिकट वितरण को लेकर असंतोष ने इस परिवार को एक नए विचार की ओर मोड़ा। हाल ही में जयप्रकाश वर्मा की वापसी के बाद भाजपा में आंतरिक खींचतान बढ़ गई थी, और कोडरमा सीट पर टिकट मुनिया देवी को देने का निर्णय कई पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं के लिए अप्रत्याशित था। जिला परिषद अध्यक्ष मुनिया देवी को टिकट देकर भाजपा ने एक नया समीकरण साधने का प्रयास किया था, लेकिन इससे कई पुराने कार्यकर्ता, विशेष रूप से प्रणव वर्मा जैसे सशक्त नेता, असंतुष्ट हो गए।

*प्रणव वर्मा का झामुमो में प्रवेश: भाजपा के लिए मानसिक आघात:-
प्रणव वर्मा का झामुमो में शामिल होना भाजपा के लिए एक मानसिक आघात से कम नहीं है। कोडरमा क्षेत्र में वर्मा परिवार का प्रभाव वर्षों से भाजपा की रीढ़ रहा है, और इस राजनीतिक दलबदल ने भाजपा की स्थिति को कमजोर किया है। पार्टी नेतृत्व भले ही इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार न करे, लेकिन इस बड़े बदलाव ने भाजपा की रणनीतिक तैयारियों को झटका दिया है। सूत्रों के मुताबिक, इस बदलाव से भाजपा को क्षेत्र में समर्थन जुटाने में मुश्किलें आ सकती हैं।

*झारखंड की राजनीति में स्थायी नहीं है मित्रता या शत्रुता:-

प्रणव वर्मा के इस निर्णय ने एक बार फिर से भारतीय राजनीति के उस चरित्र को सामने रखा है कि यहाँ स्थायी मित्रता या शत्रुता नहीं होती, बल्कि केवल हित और परिस्थितियाँ ही मायने रखती हैं। राजनीति में यह परिवर्तन दर्शाता है कि किसी भी दल में असंतोष की स्थिति कभी भी नए समीकरणों को जन्म दे सकती है। झामुमो के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है, जो पार्टी को राज्य के भीतर और अधिक समर्थन प्राप्त करने में सहायक साबित होगी।प्रणव वर्मा और उनके समर्थकों का झामुमो में शामिल होना राज्य की राजनीति में आने वाले समय में कई नए पहलुओं को जन्म दे सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस चुनौती का सामना कैसे करेगी और झामुमो इसे अपने पक्ष में कैसे भुनाएगी।

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