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होली और आजादी।


शिखर दर्पण संवाददाता।

होली अपने आजाद हो लेने की फीलिंग में तो है ही वो भी आजाद हो ली हो, इस फीलिंग के फूलफील होते हुए है। होली में हर तरह की हंसी छिप जाती है और गम पुत जाते हैं। रोनेवालों को भी फिलवक्त हँसनेवालों की हंसी खराब नही लगती।होली आजादी है स्वतंत्र है स्वायत्त है स्वतःस्फूर्त है स्वयंसिद्धा है। जनमानस का होली हो लेना और होली का जनमानस के साथ हो लेना समय है समसामयिक है। कल की होली आज की होली और आनेवाली होली में जिसकी जबकी होली दुरुस्त हो मस्त हो वो ही सही।  होली कोई क्या मनवाए और क्यों मनाए ? जब प्रकृति की फागुनी-गति न हो ? हो हो करने कराने की मति न हो ?होली मन जाय वह भी ठीक,होली मनवा दी जाय वो भी ठीक। होली आजाद होने होनेदेने का दिन है। दूसरों की आजादी के वास्ते खुद दुबकजाना,सह जाना और रह जाना,बुरा न मानना असली होली है। हैपी होली।

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