हरे भरे पेड़ पौधों व वन से आच्छादित पारसनाथ पर्वत झारखंड का सिरमौर है । यह धीरे-धीरे सीमेंट ताजा रहा है । मालूम हो कि पारसनाथ वन संरक्षित तथा वन्य प्राणी आश्र यनी क्षेत्र घोषित है । जलावन घरेलू कार्य व कई अन्य कारणों से ग्रामीणों वह लकड़ी माफियाओं द्वारा विभाग को सुविधा शुल्क देकर भारी मात्रा में बड़े वृक्षों को काटा जा रहा है । फर्नीचर आदि बनाने के लिए भी लकड़ियों को अवैध रूप से बड़े पैमाने पर काटा जा रहा है और बाजार में बेचा जा रहा है । आग लगने से बड़े वृक्षों को नुकसान तो होता ही है छोटे-छोटे पौधे भी झुलस कर मर जाते हैं ।
ग्रामीणों द्वारा महुआ पेड़ के नीचे गिरी पत्तियों व झाड़ियों को साफ करने के लिए आग लगाई जाती है ताकि आसानी से महुआ चुना जा सके । यूं तो सूर्यास्त के बाद व सूर्योदय के पहले इस वन्य प्राणी आश्रयणी में कोई भी नहीं रह सकता लेकिन इस नियम की अवहेलना करते हुए सैकड़ों भिखारी बंदना मार्ग में झोपड़ी बनाकर रहते हैं । इस दौरान जंगल काटते हैं आग लगाते हैं यहां तक की मुर्गी पालन भी करते हैं । तीर्थ यात्रियों का मानना है कि वह जंगल को हानि तो पहुंचाते ही हैं तीर्थ की गरिमा को भी धूमिल करते हैं ।
मालूम हो कि पारसनाथ पर्वत की ऊंचाई 1366 मीटर है जैनियों का यह विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है यहां 24 में से 20 तीर्थंकरों ने निर्वाण पद को प्राप्त किया है । इसके अलावे पालतू जानवरों को भी पर्वत के ऊपरी भागों में चरते हुए देखा जा सकता है । नियमानुसार पूरे क्षेत्र को मधुबन, फूली बागान, चतरो ,निमियाघाट, चिरुवा बेड़ा, कर्माटांड़ ,चकरबारी ,ढोल कट्टा, धारडीह जैसे नो ग्रेडिंग ब्लॉक में बांटने की योजना थी ।
हर 3 वर्ष में अलग-अलग ब्लॉक में पशुओं को चरने देना था ताकि दूसरे क्षेत्र को फलने फूलने का समय मिल जाए तथा एक ब्लॉक को छोड़कर पूरा वन जंगली जानवरों के लिए आरक्षित रहे । लेकिन ऐसा यहां कहीं दिखाई नहीं देता है । मालूम हो कि इस वन में बंदर ,लंगूर, चीता, भालू ,शेर, जंगली बिल्ली, नेवला ,हिरन ,आदि जानवरों के साथ-साथ विभिन्न किस्म के पक्षी एवं सरश्रृप पाए जाते हैं ।