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जैन धर्म के सबसे कम उम्र के तपस्वी सिंह निष्क्रिडीत व्रत करने वाले पूज्य अन्तर्मना महाराज का महा साधना 551वाँ दिन के पूर्ण हुवा ।

पीरटांड़,शिखर दर्पण संवाददाता ।

अन्तर्मना मुनि 108 प्रसन्न सागर जी महामुनिराज 8 महीना  पर्वत राज पर मौन साधना और एकांत में रहते हुवे  तपस्या में रत थे फिर कुछ दिन  बीस पंथी कोठी में विराजमान रहकर पुनः विगत 1 माह से स्वर्णभद्र कूट में इस विषम ठंडी में अपनी मौन साधना ओर सिंह निष्क्रिय व्रत करते हुवे मौन वाणी से आज की उवाच में बताया कि बैठ अकेला दो घड़ी, भगवान के गुण गाया कर.. मन मन्दिर में ये जीया, झाडू रोज लगाया कर..!आगत का करे स्वागत, विगत को दे विदाई । जिनके पास इरादे होते हैं, उनके पास बहाने नहीं होते। यदि हम अपने हालातों को नहीं बदल सकते, लेकिन हम उन हालातों के प्रति अपनी सोच को बदल कर, सावधान तो हो ही सकते हैं, जिससे यह नया वर्ष, नये हर्ष के साथ, नयी उमंग और तरंग के साथ, नये जोश और जुनून के साथ, बड़ो के आशीर्वाद और सद्भाव के साथ शुरू कर सकें।इसलिए - आज से एक संकल्प लें कि रोज एक पुण्य कार्य करेंगे और एक पाप, एक बुराई का त्याग करेंगे।रोज रात सोने से पहले आज की समीक्षा और कल की प्रतिक्षा करेंगे।रोज सोने से पहले आज के बैर विरोध को खत्म करें और कल की शुरूआत भाई चारे से प्रारंभ करें। जैसे हम रोज घर की सफ़ाई झाडू से और शरीर की सफाई साबुन शैम्पू से करते हैं, वैसे ही रात सोने से पहले मन की सफाई, आज जो भी बुरे कार्य किये हैं या हुये हैं उनका पश्चाताप करें। भगवान के नाम की साबुन से मन के मैल को धो डालें। यदि हम रोज सफाई करते हैं तो मन का दर्पण कभी मैला नहीं हो पायेगा और नया साल हँसते मुस्कुराते गुजर जायेगा। रोज बुराई को विदाई दें,, अच्छाई को स्वीकार करें ।

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